शुक्रवार, 18 मार्च 2011


नाचो, गाओ ,धूम मचाओ
फिर से आई है होली
रंग बिरंगी जमी लग रही
इंद्र धनुष रंगोली .

होली का हुद्दंग मचा है
गलीयो में चोबारो में
भिग रहा है हर्षित मन
मस्ती भरी फुहारो में .

मंगलवार, 12 अक्तूबर 2010

चीन की चालाकी
















.॥(1)भारतीय नीति निर्माताओ को धीरे धीरे ही सही किन्तु यह समझ आ गया है की चीन उनकी भलमनसाहत को मज़बूरी समझ रहा है ।एक दो साल पहले तक जहा चीन की आलोचना को कुटनीतिक मर्यादाओ के खिलाफ माना जाता था ।वही भारतीय सरकार द्वारा अब उससे तू तू मे मे से परहेज नहीं किया जा रहा है . भारत द्वारा सामूहिक स्वर मे चीन को यह सन्देश देने की कोशिश की जा रही है की ड्रेगन भारत को कमजोर समझने की हिमाकत ना करे .यह तो जग जाहिर है की चीन और भारत का सीमाविवाद है और चीन समय समय पर भारत की तरक्की पर ब्रेक लगाने की कोशिश करता रहा है .जानकार तो यहाँ तक कहते ही भारत और चीन के बीच के रिश्ते परिपक्व दिखाई देते है लेकिन है नहीं. १९६२ की सी स्थिति पुन बनती नजर आ रही है .चीन भारत के लिए कितना खतरनाक हो सकता है ,भारत को क्या सावधानिया रखनी चाहिए . विश्लेषण कर रहे है स्वतंत्र पत्रकार केशव जांगिड .... (2)याद कीजिये की जब अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार मे रक्षा मंत्री जार्ज फ्रानान्दिस ने चीन को भारत का दुश्मन नंबर एक बताया था तो चारो और हडकंप मच गया था .क्योकि भारत हिंदी चीनी भाई भाई की राह पर चल रहे था . लेकिन आज रिश्ते तेजी से बदले है . अब चीन की साम्राजवादी नीतियों को भापते हुए भारत भी चीन को आखे दिखाने लगा है .इसका सबसे बड़ा उदाहरण मिला पिछले दिनों जब रक्षा मंत्री एंटनी ने एक सेन्य कार्यक्रम मे यह कहा "की हमारे लिए पकिस्तान और चीन एक जैसे ही शत्रु है ". दरअसल चीन नहीं चाहता की एशिया मे उसके आलावा किसी और की भी हुकूमत हो . वह भारत को हमेशा अपने चिरपरिचित प्रतिदुंदी के रूप मे देखता आया है . भारत की तरक्की पर अंकुश लगाने के लिए उसने अमेरिका से हुए परमाणु प्रसार विधेयक को विश्व बिरादरी के सामने पारित होने से रोका , कश्मीरी लोगो को अलग वीजा दिया , एशियाई विकास बेंक द्वारा भारत को ऋण दिए जाने का विरोध किया यहाँ तक की नेपाल मे चीनी शासन वाली सरकार को चलने के लिए वहा के सांसदों को खरीदने तक की कोशिश की .कही ना कही चीन भी यह जनता है की आर्थिक महाशक्ति बनते भारत से सीधे मुकाबला करना टेडी खीर साबित होगा .अक्साई चीन पर कब्ज़ा ,पाक अधिकृत कश्मीर मे अपनी सेनाये भेजना ,तिब्बत मे भारतीय सीमा के पास रेल लाइन बिछाना इन बातो की तरफ इशारा करता है की चीन एशिया का अमेरिका बनने के सपने देख रहा है .लेकिन उसे यह चिंता भी है की यदि भारत ने उसके चिर प्रतिद्वदियो जैसे जापान ,ताइवान ,इंडोनेशिया ,दलाई लामा ,फिलीपींस ,हान्ग्कोंग से हाथ मिला लिया तो उसके सपने अधूरे रह जायेगे . भारत के अपने इन पड़ोसियों से मधुर सम्बन्ध है .चीन का तो यह भी कहना है की अरुणांचल नया ताइवान है ,जो चीन का ही हिस्सा है लेकिन भारत इस बात को सिरे से खारिज करते आया है . भारत से लगी सीमाओं पर चीन ने १०,००० से भी ज्यादा सेनिक तेनात किये हुए है . पीस मिशन २०१० के नाम पर उसने कजाकिस्तान मे भी १००० से जयादा सेनिक तेनात किये हुए है . चीन की पाकिस्तान के साथ बढती यारी भी भारत के आँखों की किरकिरी है .गत सितम्बर मे चीन ने भारत पर साइबर हमले भी किये है ,यह बात खुद सुरक्षा सलाहकार एम .के .नारायणन ने स्वीकार की है . ऐसे हमले चीन अमेरिका और अन्य देशो पर भी कर चुका है . लेकिन यह तो चीन भी नहीं चाहेगा की भारत से युद्ध हो ,क्योकि दोनों ही देश विकास के नए आयाम स्थापित कर रहे है ,वे नहीं चाहेगे की किसी तबाही के कारण वे विश्व बिरादरी से पीछे हो जाए . मुंबई मे हुए आतंकी हमलो मे हमलावर भले ही पकिस्तान से आये थे ,पर उनके पास जो रायफल पायी गई वे चीन मे निर्मित थी . जिससे भारत के कान खड़े हो गए . और भारत सतर्क हो गया .उसने दो टूक शब्दों मे कहा की वह पाक आतंकियों का साथ देने वाले किसी भी देश को माफ़ नहीं करेगा . (3)तथ्य जिनसे चीन बिलबिला उठा .... * तिब्बत की स्वायता के लिए संघर्ष वाले दलाई लामा को नोबेल मिलने के बाद अब एक और चीनी लोकतंत्र समर्थक नेता लियु जियाबाओ (ग्यारह साल से चीन की जेल मे बंद ) को हाल ही मे २०१० का नोबेल शांति पुरस्कार मिला है .साम्यवादी चीन नहीं चाहता की उसका हाल भी विघटन के रूप मे सोवियत संघ जैसा हो . इस पुरस्कार का विरोध करने से चीन के काले चहरे को पूर्वे विश्व समुदाय ने देखा लिया है . * भारत की बढती आर्थिक और सामरिक ताकत ,अमेरिका और अन्य यूरोपीय देशो से उसकी निकटता को चीन हजम नहीं कर पा रहा है .*आर्थिक मंदी के बाद भी भारत और चीन की विकास दरो मे अब केवल एक प्रतिशत का अंतर रहा गया है ,जो भारत के सफल विकास को दर्शाता है . चीन इसीसे खफा है . * भारत ने भी चीन की सीमांत गतिविधियों का जवाब देते हुए असम ,अरुणांचल आदि राज्यों मे मिसाइलो और विमानों की तेनाती के साथ साथ सड़क निर्माण का काम भी शुरू कर दिया है . यह बात भी चीन को अखर रही है . * भारत ने चीन के अवेध सामान सामानों से बाजारों को बचाने के लिए कई यूरोपीय देशो की तरह कड़े कदम उठाये है * १९८० मे इन्द्रा गाँधी द्वारा शुरू किये गए आपरेशन फाल्कन को भारत सरकार ने दूसरे नाम से शुरू करने की योजना बना ली है .जिसमे देश की सीमाओं पर १ लाख सेनिको की तेनाती की जाएगी . इस बात ने चीनी हलको मे सनसनी मचा दी है . (4)क्या वाकई ड्रेगन मे है दम ,या भारत है दबंग ? यह सत्य है की चीन की मिसाइल क्षमता हमसे कही ज्यादा है .लेकिन हम भी चीन के मुंबई ,यानी शंघ्याई पर निशाना लगा सकते है .२०१२ तक हम भी सम्पूर्ण चीन को अपनी मिसाइल जद मे कर लेंगे .थल सेना के हिसाब से चीन विश्व मे दूसरे ,भारत चोथे और पाकिस्तान १५ वे स्थान पर है .२५०० लड़ाकू विमानों के साथ चीनी वायु सेना ताकतवर जरुर है .लेकिन अमेरिकी और यूरोपीय तकनीक के साथ १६०० विमानों वाली भारतीय वायु सेना विश्व की कुछ एक ताकतवर सेनाओं मे से एक .जिसका लोहा अमेरिका ,फ़्रांस ,इंग्लैंड रूस जैसे देश मान चुके है . हमारे पास विश्व की सेनाओं के साथ किये गए युद्ध अभ्यासों का और पकिस्तान के साथ विषम परिस्थितियों मे लड़ी गई २ जंगो का मजबूत अनुभव है .चीनी सेनाये किसी देश के साथ युद्ध अभ्यास नहीं कराती .न ही चीन किसी देश से कोई सामरिक समझोता कर हथियार खरीदता है . चीन के पास जल मे भले ही जहाज जयादा हो ,लेकिन एशिया का केवल एक एयर क्राफ्ट करियर भारत के पास है .डा .भरत झुनझुनवाला के अनुसार "चीन के आधे से जयादा जहाज युद्ध लायक स्थिति मे नहीं है" (शोध के बाद उनकी किताब मे लिखा )कई विदेशी जानकारों ने तो अपनी चीनी यात्रा के बाद यहाँ तक दावे किये है की चीन के गावो की हालत भारत के देहात से भी खराब है ,चीनी लोग केवल निर्माण जानते है सेवा के क्षेत्र मे सारी कम्पनिया विदेशी है .चीन के असली दावे यदि पता लगे तो कई क्षेत्रो मे तो वह भारत से भी पीछे है . चीन ने अपने नगरो जैसे बीजिंग ,ग्वान्झाओ ,सिचियांग नगरो का खूब विकास किया है .किन्तु विकास की इस दोड मे गाव पीछे छुट गए है ,जिनकी भनक चीन साम्यवादी होने के कारण विश्व समुदाय को नहीं लगने देता ,की कही लाल झंडे पर कोई दाग ना लग जाए . (५)आगाह करता पत्र:( चुनोती बनते चीन के प्रति आगाह करते हुए दूरदर्शी सरदार पटेल ने तात्कालिक प्रधानमंत्री नेहरु के नाम लिखे पत्र के कुछ अंश ) नई दिल्ली ७ नवम्बर १९५०मेरे प्रिय जवाहरलाल ,चीन ने हमें अपने शांति पूर्ण आडम्बरो मे उलझाने का नाटक किया है .चीन की अंतिम चाल कपट और विश्वासघात है .हम ही उनका मार्गदर्शन करते रहे ,अब वे हमें ही आँख दिखा रहे है .चीन द्वारा तिब्बत पर कब्जे के विषय पर लिखे गए टेलीग्राफ की अशिष्ट भाषा किसी मित्र की नहीं ,भावी शत्रु की है .तिब्बत हमारे मित्र के रूप मे था ,अपनी सीमाओं की रक्षा के लिए हमें उसका साथ तो देना ही होगा .चीन की द्रष्टि केवल तिब्बित पर ही नहीं बल्कि असम ,दार्जिलिंग और हमारे कई इलाको पर भी है .संचार की द्रष्टि से हम वहा बड़े ही कमजोर है ,देश की खातिर हमें इन बातो पर ध्यान देने की आवयश्कता है ,ताकि हमारी सीमाए अभेद बनी रहे . " आपका अपना वल्लभ भाई पटेल (गाँधी संग्रालय ,दिल्ली से साभार ) (6) क्या हो भारत की तेयारिया :*इस समय भारत के लिए पकिस्तान और चीन दो बड़े खतरे है .ये दोनों ही देश एक दूसरे के दोस्त है ,अत : भारत को दोनों के लिए एक जैसी ही सेन्य नीति बनानी होगी . * भारत को अपनी आर्थिक और सेन्य ताकत मे इजाफा करते हुए विश्व के अधिक से अधिक देशो का समर्थन जुटाना होगा . जो उसे सुरक्षा परिषद् की स्थाई सदस्यता दिला सके .ताकि हम चीन को एक और झटका दे सके . *सामरिक क्षेत्रो मे उन्नत तकनीक और देश से भ्रष्टाचार को कम करने के लिए कड़े कदम उठाने होंगे . *हमारी विदेश नीति और कूटनीति को और भी कठोर बनाने और देश के नागरिको के हित मे काम करने की आव्य्श्यकता है . * स्वदेशी तकनीको का विकास कर चीनी माल को बाजारों से उखाड़ फेकना हमारा लक्ष्य होना चाहिए . ताकि लोग भी स्वदेशी की तरफ आकर्षित हो . (समाप्त )










शनिवार, 2 अक्तूबर 2010

हम ही दोषी ? खेल अच्छे होंगे ?

आज भारत अपनी ५००० साल पुरानी ताकत दिल्ली मे खेलो के आयोजन से दिखाने जा रहा है .हमने चीन की कितनी वाह वाही की थी २००८ मे । और कुछ दोषियों की कारण पूरे देश को ही दाव पर लगा दिया था । आज भारत चीन की राह पर चल रहा है । देश ही नहीं विदेशी भी भारत के रंग मे रंगते नजर आ रहे है । विश्वगुरु एक बार फिर ७२ देशो के साथ खड़ा है । हम जिस थाली मे खाते है उसी मे छेद कर देते है .चीन नए खूब गलतिय की लेकिन अपनी मिडिया तक नही आने दी , वो हमेशा ऐसा ही करता है । हमारी मीडिया नए अपने दायित्व निभाये है । लेकिन कई बार अपने स्वार्थो की पूर्ति भी करती नजर आई । अब सब भूलने का समय है .खेल अच्छे से हो जाए ,देश का नाम रोशन हो जाए । फिर देख लेंगे दोषियों को । कुश हू की मे भी मिडिया मे रहकर दिल्ली मे कवरेज कर रहा हू .... केशव जांगिड (लेखक और पत्रकार )

सोमवार, 13 सितंबर 2010

हिंदी की पुण्यतिथि कार्यक्रम

नमस्कार , कल बड़ा ही पावन दिन है । कल हम हिंदी की पुण्यतिथि मन रहे है । हमारे बाल क्लब और पत्रिका के आफिस मे भी कई कार्यक्रम आयोजिन हो रहे है । आप भी हिंदी की शोक सभा मे आ सकते है .इसके लिए कोई शुल्क नहीं होगा । लेकिन आपका वास्ता ऐसे वर्ग से होने चाहिए , जो हिंदी के नाम पर खाते हो और अग्रेजी के गुण गाते हो । अगर आप उस वर्ग से है तो आपको हिंदी की तस्वीर पर आसू बहाने का भी सोभाग्य मिलेगा । ऐसे युवा भी इस सम्मलेन मे आमंत्रित होंगे जो एफ. एम .की भाषा को पूरी तरह अग्रेजी करने के पक्ष मे है ।
अगर आप अन्य भाषाओं मे के हिमायती है और चाहते है की हिंदी को राज भाषा का दर्जा ना मिले ,आप सादर आमंत्रित है । संपर्क करे ... केशव जांगिड .... (आप जैसा ही हिंदी का हत्यारा )
फोन :९२१०५००१६३ , स्थान : हिंदी आबरू केंद्र ,न्यू डेल्ही

बुधवार, 28 अप्रैल 2010

हिंदी आकादमी को बचाए ?

आज हम हिंदी आकादमी कि बात करते है . कुछ ऐसी बाते सामने आई है जो हिंदी कि अकादमी कि साख पर कालिक पोतने का काम करती है . पिछले दिनों जब हिंदी आकादमी के कार्यक्रम लोक बिम्ब (त्रिवेणी सभागार,दिल्ली ) चल रहा था . तब उनके एक कर्मचारी डा .लोकेश कि दिल का दोरा पड़ने से मोत हो गई थी ,आज वह विवादों में है . यह बात अब उड़ रही है कि उन्हें अपने आफिस में काम तक नहीं करने दिया जाता था .बहुत जय्यदा परेशान किया जाता था .इस कारण उनकी मोत हो गई . आकादमी में कई ऐसे काम होते है जो साहित्यिक तो बिलकुल नहीं है . ३० अप्रेल तक यहाँ सचिव कि नियुक्ति होनी है .हिंदी आकादमी के कर्मचारी ही त्राहिमाम कर रहे है वे नहीं चाहते कि कार्यवाहक सचिव फिर से आकर जंगल राज फेलादे . डा. लोकेश कि पत्नी से भी जबरदस्ती बंद कमरे में हलफनामे पर दस्तखत कराये गए . यह बात विश्वस्त सूत्रों से पता लगी है . मुख्य मंत्री शीला दीक्षित को तो यह कुछ भी नहीं पता होगा ,क्योकि उनके और उपाध्यक्ष श्री चक्रधर के सामने कुछ बाते तो आ ही नहीं पाती . यहाँ तक कि आकादमी कि महिला कर्मचारियों से तो बदतमीजी से बात कि जाती है . विष्णु प्रभाकर जी कि जनम तिथि पर सचिव महोदय तो एक महिला कर्मचारी से यहाँ तक कहा गए कि में तुझे देख लुगा ,ख़तम कर दूंगा ..आपके सामने यह बात इसलिए राखी जारही है कि जब आप हिंदी अकादमी के कार्यकर्मो में जाते है ,या साहित्यकार जब पुरूस्कार लेते है खूब आरोप लगते है , आज इसे सुधरने का मोका हमारे पास है ,क्योना कोई ऐसे सचिव को भेजे जो इस साहित्य संस्था को राजनीतीकारण से बचा सके, और ऐसी नोबत फिर नाए कि एक साहित्यिक संस्था को आखाडा बना दिया जाए . अगर आप के आसपास कोई ऐसा व्यक्ति हो जो इन योग्यताओं को रखता हो ,तो उसे हिंदी आकदमी में सचिव के लिए आवेदन कैने को ३० अप्रेल से पहले कहे . वह हिंदी पी . एच .डी. हो .सरकारी नोकरी में ८-१० साल तक ८,००० के वेतन पर रहा हो . प्रशाशनिक अनुभव हो .अपनी पतिक्रिया जरुर दे , क्या पता हम हिंदी साहित्य कि इस अमूल्य धरोहर को बचा सके , नहीं तो एक बार फिर जंगल राज आ जायेगा ,ये सचिव जीके ही कथन है जो बाहर नहीं आ पाते है कि ,, पञ्च साल के लिए आने दो सबको देख लेगे ..

सोमवार, 19 अप्रैल 2010

मेरी पसंदीदा कहानी

प्रेमचंद की कहानी - गैरत की कटार

कितनी अफ़सोसनाक, कितनी दर्दभरी बात है कि वही औरत जो कभी हमारे पहलू में बसती थी उसी के पहलू में चुभने के लिए हमारा तेज खंजर बेचैन हो रहा है। जिसकी आंखें हमारे लिए अमृत के छलकते हुए प्याले थीं वही आंखें हमारे दिल में आग और तूफान पैदा करें! रूप उसी वक्त तक राहत और खुशी देता है जब तक उसके भीतर एक रूहानी नेमत होती हैं और जब तक उसके अन्दर औरत की वफ़ा की रूह.हरकत कर रही हो वर्ना वह एक तकलीफ़ देने चाली चीज़ है, ज़हर और बदबू से भरी हुई, इसी क़ाबिल कि वह हमारी निगाहों से दूर रहे और पंजे और नाखून का शिकार बने। एक जमाना वह था कि नईमा हैदर की आरजुओं की देवी थी, यह समझना मुश्किल था कि कौन तलबगार है और कौन उस तलब को पूरा करने वाला। एक तरफ पूरी-पूरी दिलजोई थी, दूसरी तरफ पूरी-पूरी रजा। तब तक़दीर ने पांसा पलटा। गुलो-बुलबुल में सुबह की हवा की शरारतें शुरू हुईं। शाम का वक्त था। आसमान पर लाली छायी हुई थी। नईमा उमंग और ताजुगी और शौक से उमड़ी हुई कोठे पर आयी। शफ़क़ की तरह उसका चेहरा भी उस वक्त खिला हुआ था। ऐन उसी वक्त वहां का सूबेदार नासिर अपने हवा की तरह तेज घोड़े पर सवार उधर से निकला, ऊपर निगाह उठी तो हुस्न का करिश्मा नजर आया कि जैसे चांद शफ़क़ के हौज में नहाकर निकला है। तेज़ निगाह जिगर के पार हुई। कलेजा थामकर रह गया। अपने महल को लौटा, अधमरा, टूटा हुआ। मुसाहबों ने हकीम की तलाश की और तब राह-रास्म पैदा हुई। फिर इश्क की दुश्वार मंज़िलों तय हुईं। वफ़ा ओर हया ने बहुत बेरुखी दिखायी। मगर मुहब्बत के शिकवे और इश्क़ की कुफ्र तोड़नेवाली धमकियां आखिर जीतीं। अस्मत का खलाना लुट गया। उसके बाद वही हुआ जो हो सकता था। एक तरफ से बदगुमानी, दूसरी तरफ से बनावट और मक्कारी। मनमुटाव की नौबत आयी, फिर एक-दूसरे के दिल को चोट पहुँचाना शुरू हुआ। यहां तक कि दिलों में मैल पड़ गयी। एक-दूसरे के खून के प्यासे हो गये। नईमा ने नासिर की मुहब्बत की गोद में पनाह ली और आज एक महीने की बेचैन इन्तजारी के बाद हैदर अपने जज्बात के साथ नंगी तलवार पहलू में छिपाये अपने जिगर के भड़कते हूए शोलों को नईमा के खून से बुझाने के लिए आया हुआ है।



आधी रात का वक्त था और अंधेरी रात थी। जिस तरह आसमान के हरमसरा में हुसन के सितारे जगमगा रहे थे, उसी तरह नासिर का हरम भी हुस्न के दीपों से रोशन था। नासिर एक हफ्ते से किसी मोर्चे पर गया हुआ है इसलिए दरबान गाफ़िल हैं। उन्होंने हैदर को देखा मगर उनके मुंह सोने-चांदी से बन्द थे। ख्वाजासराओं की निगाह पड़ी लेकिन वह पहले ही एहसान के बोझ से दब चुके थे। खवासों और कनीजों ने भी मतलब-भरी निगाहों से उसका स्वागत किया और हैदर बदला लेने के नशे में गुनहगार नईमा के सोने के कमरे में जा पहुँचा, जहां की हवा संदल और गुलाब से बसी हुई थी।
कमरे में एक मोमी चिराग़ जल रहा था और उसी की भेद-भरी रोशनी में आराम और तकल्लुफ़ की सजावटें नज़र आती थीं जो सतीत्व जैसी अनमोल चीज़ के बदले में खरीदी गयी थीं। वहीं वैभव और ऐश्वर्य की गोद में लेटी हुई नईमा सो रही थी।
हैदर ने एक बार नईया को ऑंख भर देखा। वही मोहिनी सूरत थी, वही आकर्षक जावण्य और वही इच्छाओं को जगानेवाली ताजगी। वही युवती जिसे एक बार देखकर भूलना असम्भव था।
हॉँ, वही नईमा थी, वही गोरी बॉँहें जो कभी उसके गले का हार बनती थीं, वही कस्तूरी में बसे हुए बाल जो कभी कन्धों पर लहराते थे, वही फूल जैसे गाल जो उसकी प्रेम-भरी आंखों के सामने लाल हो जाते थे। इन्हीं गोरी-गोरी कलाइयों में उसने अभी-अभी खिली हुई कलियों के कंगन पहनाये थे और जिन्हें वह वफा के कंगन समझ था। इसकी गले में उसने फूलों के हार सजाये थे और उन्हें प्रेम का हार खयाल किया था। लेकिन उसे क्या मालूम था कि फूलों के हार और कलियों के कंगन के साथ वफा के कंगन और प्रेम के हार भी मुरझा जायेंगे।
हां, यह वही गुलाब के-से होंठ हैं जो कभी उसकी मुहब्बत में फूल की तरह खिल जाते थे जिनसे मुहब्बत की सुहानी महक उड़ती थी और यह वही सीना है जिसमें कभी उसकी मुहब्बत और वफ़ा का जलवा था, जो कभी उसके मुहब्बत का घर था।
मगर जिस फूल में दिल की महक थी, उसमें दग़ा के कांटे हैं।



हैदर ने तेज कटार पहलू से निकाली और दबे पांव नईमा की तरफ़ आया लेकिन उसके हाथ न उठ सके। जिसके साथ उम्र-भर जिन्दगी की सैर की उसकी गर्दन पर छुरी चलाते हुए उसका हृदय द्रवित हो गया। उसकी आंखें भीग गयीं, दिल में हसरत-भरी यादगारों का एक तूफान-सा तक़दीर की क्या खूबी है कि जिस प्रेम का आरम्भ ऐसा खुशी से भरपूर हो उसका अन्त इतना पीड़ाजनक हो। उसके पैर थरथराने लगे। लेकिन स्वाभिमान ने ललकारा, दीवार पर लटकी हुई तस्वीरें उसकी इस कमज़ोरी पर मुस्करायीं।
मगर कमजोर इरादा हमेशा सवाल और अलील की आड़ लिया करता है। हैदर के दिल में खयाल पैदा हुआ, क्या इस मुहब्बत के बाब़ को उजाड़ने का अल्ज़ाम मेरे ऊपर नहीं है? जिस वक्त बदगुमानियों के अंखुए निकले, अगर मैंने तानों और धिक्कारों के बजाय मुहब्बत से काम लिया होता तो आज यह दिन न आता। मेरे जुल्मों ने मुहब्बत और वफ़ा की जड़ काटी। औरत कमजोर होती है, किसी सहारे के बग़ैर नहीं रह सकती। जिस औरत ने मुहब्बत के मज़े उठाये हों, और उल्फ़ात की नाजबरदारियां देखी हों वह तानों और जिल्लतों की आंच क्या सह सकती है? लेकिन फिर ग़ैरत ने उकसाया, कि जैसे वह धुंधला चिराग़ भी उसकी कमजोरियों पर हंसने लगा।
स्वाभिमान और तर्क में सवाल-जवाब हो रहा था कि अचानक नईमा ने करवट बदली ओर अंगड़ाई ली। हैदर ने फौरन तलवार उठायी, जान के खतरे में आगा-पीछा कहां? दिल ने फैसला कर लिया, तलवार अपना काम करनेवाली ही थी कि नईमा ने आंखें खोल दीं। मौत की कटार सिर पर नजर आयी। वह घबराकर उठ बैठी। हैदर को देखा, परिस्थिति समझ में आ गयी। बोली-हैदर!



हैदर ने अपनी झेंप को गुस्से के पर्दे में छिपाकर कहा- हां, मैं हूँ हैदर!
नईमा सिर झुकाकर हसरत-भरे ढंग से बोली—तुम्हारे हाथों में यह चमकती हुई तलवार देखकर मेरा कलेजा थरथरा रहा है। तुम्हीं ने मुझे नाज़बरदारियों का आदी बना दिया है। ज़रा देर के लिए इस कटार को मेरी ऑंखें से छिपा लो। मैं जानती हूँ कि तुम मेरे खून के प्यासे हो, लेकिन मुझे न मालूम था कि तुम इतने बेरहम और संगदिल हो। मैंने तुमसे दग़ा की है, तुम्हारी खतावार हूं लेकिन हैदर, यक़ीन मानो, अगर मुझे चन्द आखिरी बातें कहने का मौक़ा न मिलता तो शायद मेरी रूह को दोज़ख में भी यही आरजू रहती। मौत की सज़ा से पहले आपने घरवालों से आखिरी मुलाक़ात की इजाज़त होती है। क्या तुम मेरे लिए इतनी रियायत के भी रवादार न थे? माना कि अब तुम मेरे लिए कोई नहीं हो मगर किसी वक्त थे और तुम चाहे अपने दिल में समझते हो कि मैं सब कुछ भूल गयी लेकिन मैं मुहब्बत को इतनी जल्दी भूल जाने वाली नहीं हूँ। अपने ही दिल से फैसला करो। तुम मेरी बेवफ़ाइयां चाहे भून जाओ लेकिन मेरी मुहब्बत की दिल तोड़नेवाली यादगारें नहीं मिटा सकते। मेरी आखिरी बातें सुन लो और इस नापाक जिन्दगी का हिस्सा पाक करो। मैं साफ़-साफ़ कहती हूँ इस आखिरी वक्त में क्यों डरूं। मेरी कुछ दुर्गत हुई है उसके जिम्मेदार तुम हो। नाराज न होना। अगर तुम्हारा ख्य़ाल है कि मैं यहां फूलों की सेज पर सोती हूँ तो वह ग़लत है। मैंने औरत की शर्म खोकर उसकी क़द्र जानी है। मैं हसीन हूं, नाजुक हूं; दुनिया की नेमतें मेरे लिए हाज़िर हैं, नासिर मेरी इच्छा का गुलाम है लेकिन मेरे दिल से यह खयाल कभी दूर नहीं होता कि वह सिर्फ़ मेरे हुस्न और अदा का बन्दा है। मेरी इज्जत उसके दिल में कभी हो भी नहीं सकती। क्या तुम जानते हो कि यहां खवासों और दूसरी बीवियों के मतलब-भरे इशारे मेरे खून और जिगर को नहीं लजाते? ओफ्, मैंने अस्मत खोकर अस्मत की क़द्र जानी है लकिन मैं कह चुकी हूं और फिर कहती हूं, कि इसके तुम जिम्मेदार हो।
हैदर ने पहलू बदलकर पूछा—क्योंकर?
नईमा ने उसी अन्दाज से जवाब दिया-तुमने बीवी बनाकर नहीं, माशूक बनाकर रक्खा। तुमने मुझे नाजुबरदारियों का आदी बनाया लेकिन फ़र्ज का सबक नहीं पढ़ाया। तुमने कभी न अपनी बातों से, न कामों से मुझे यह खयाल करने का मौक़ा दिया कि इस मुहब्बत की बुनियाद फ़र्ज पर है, तुमने मुझे हमेशा हुसन और मस्तियों के तिलिस्म में फंसाए रक्खा और मुझे ख्वाहिशों का गुलाम बना दिया। किसी किश्ती पर अगर फ़र्ज का मल्लाह न हो तो फिर उसे दरिया में डूब जाने के सिवा और कोई चारा नहीं। लेकिन अब बातों से क्या हासिल, अब तो तुम्हारी गैरत की कटार मेरे खून की प्यासी है ओर यह लो मेरा सिर उसके सामने झुका हुआ है। हॉँ, मेरी एक आखिरी तमन्ना है, अगर तुम्हारी इजाजत पाऊँ तो कहूँ।
यह कहते-कहते नईमा की आंखों में आंसुओं की बाढ़ आ गई और हैदर की ग़ैरत उसके सामने ठहर न सकी। उदास स्वर में बोला—क्या कहती हो?
नईमा ने कहा-अच्छा इजाज़त दी है तो इनकार न करना। मुझें एक बार फिर उन अच्छे दिनों की याद ताज़ा कर लेने दो जब मौत की कटार नहीं, मुहब्बत के तीर जिगर को छेदा करते थे, एक बार फिर मुझे अपनी मुहब्बत की बांहों में ले लो। मेरी आख़िरी बिनती है, एक बार फ़िर अपने हाथों को मेरी गर्दन का हार बना दो। भूल जाओ कि मैंने तुम्हारे साथ दगा की है, भूल जाओ कि यह जिस्म गन्दा और नापाक है, मुझे मुहब्बत से गले लगा लो और यह मुझे दे दो। तुम्हारे हाथों में यह अच्छी नहीं मालूम होती। तुम्हारे हाथ मेरे ऊपर न उठेंगे। देखो कि एक कमजोर औरत किस तरह ग़ैरत की कटार को अपने जिगर में रख लेती है।
यह कहकर नईमा ने हैदर के कमजोर हाथों से वह चमकती हुई तलवार छीन ली और उसके सीने से लिपट गयी। हैदर झिझका लेकिन वह सिर्फ़ ऊपरी झिझक थी। अभिमान और प्रतिशोध-भावना की दीवार टूट गयी। दोनों आलिंगन पाश में बंध गए और दोनों की आंखें उमड़ आयीं।
नईमा के चेहरे पर एक सुहानी, प्राणदायिनी मुस्कराहट दिखायी दी और मतवाली आंखों में खुशी की लाली झलकने लगी। बोली-आज कैसा मुबारक दिन है कि दिल की सब आरजुएं पूरीद होती हैं लेकिन यह कम्बख्त आरजुएं कभी पूरी नहीं होतीं। इस सीने से लिपटकर मुहब्बत की शराब के बगैर नहीं रहा जाता। तुमने मुझे कितनी बार प्रेम के प्याले हैं। उस सुराही और उस प्याले की याद नहीं भूलती। आज एक बार फिर उल्फत की शराब के दौर चलने दो, मौत की शराब से पहले उल्फ़त की शराब पिला दो। एक बार फिर मेरे हाथों से प्याला ले लो। मेरी तरफ़ उन्हीं प्यार की निगाहों से दंखकर, जो कभी आंखों से न उतरती थीं, पी जाओ। मरती हूं तो खुशी से मरूं।
नईमा ने अगर सतीत्व खोकर सतीत्व का मूल्य जाना था, तो हैदर ने भी प्रेम खोकर प्रेम का मूल्य जाना था। उस पर इस समय एक मदहोशी छायी हुई थी। लज्जा और याचना और झुका हुआ सिर, यह गुस्से और प्रतिशोध के जानी दुश्मन हैं और एक गौरत के नाजुक हाथों में तो उनकी काट तेज तलवार को मात कर देती है। अंगूरी शराब के दौर चले और हैदर ने मस्त होकर प्याले पर प्याले खाली करने शुरू किये। उसके जी में बार-बार आता था कि नईमा के पैरों पर सिर रख दूं और उस उजड़े हुए आशियाने को आदाब कर दूं। फिर मस्ती की कैफ़्रियत पैदा हुई और अपनी बातों पर और अपने कामों पर उसे अख्य़ियार न रहा। वह रोया, गिड़गिड़ाया, मिन्नतें कीं, यहां तक कि उन दग़ा के प्यालों ने उसका सिर झुका दिया।



हैदर कई घण्टे तक बेसुध पड़ा रहा। वह चौंका तो रात बहुत कम बाक़ी रह गयी थी। उसने उठना चाहा लेकिन उसके हाथ-पैर रेशम की डोरियों से मजबूत बंधे हुए थे। उसने भौचक होकर इधर-उधर देखा। नईमा उसके सामने वही तेज़ कटार लिये खड़ी थी। उसके चेहरे पर एक क़ातिलों जैसी मुसकराहट की लाली थी। फ़र्जी माशूक के खूनीपन और खंजरबाजी के तराने वह बहुत बार गा चुका था मगर इस वक्त उसे इस नज्जारे से शायराना लुत्फ़ उठाने का जीवट न था। जान का खतरा, नशे के लिए तुर्शी से ज्यादा क़ातिल है। घबराकर बोला-नईम!
नईमा ने लहजे में कहा-हां, मैं हूं नईमा।
हैदर गुस्से से बोला-क्या फिर दग़ा का वार किया?
नईमा ने जवाब दिया-जब वह मर्द जिसे खुदा ने बहादुरी और क़ूवत का हौसला दिया है, दग़ा का वार करता है तो उसे मुझसे यह सवाल करने का कोई हक़ नहीं। दग़ा और फ़रेब औरतों के हथियार हैं क्योंकि औरत कमजोर होती है। लेकिन तुमको मालूम हो गया कि औरत के नाजुक हाथों में ये हथियार कैसी काट करते हैं। यह देखो-यह आबदार शमशीर है, जिसे तुम ग़ैरत की कटार कहते थे। अब वह ग़ैरत की कटार मेरे जिगर में नहीं, तुम्हारे जिगर में चुभेगी। हैंदर, इन्सान थोड़ा खोकर बहुत कुछ सीखता है। तुमने इज्जत और आबरू सब कुछ खोकर भी कुछ न सीखा। तुम मर्द थे। नासिर से तुम्हारी होड़ थी। तुम्हें उसके मुक़ाबिले में अपनी तलवार के जौहर दिखाना था लेकिन तुमने निराला ढंग अख्तियार किया और एक बेकस और पर दग़ा का वार करना चाहा और अब तुम उसी औरत के समाने बिना हाथ-पैर के पड़े हुए हो। तुम्हारी जान बिलकुल मेरी मुट्ठी में है। मैं एक लहमे में उसे मसल सकती हूं और अगर मैं ऐसा करूं तो तुम्हें मेरा शुक्रगुज़ार होना चाहिये क्योंकि एक मर्द के लिए ग़ैरत की मौत बेग़ैरती की जिन्दगी से अच्छी है। लेकिन मैं तुम्हारे ऊपर रहम करूंगी: मैं तुम्हारे साथ फ़ैयाजी का बर्ताव करूंगी क्योंकि तुम ग़ैरत की मौत पाने के हक़दार नहीं हो। जो ग़ैरत चन्द मीठी बातों और एक प्याला शराब के हाथों बिक जाय वह असली ग़ैरत नहीं है। हैदर, तुम कितने बेवकूफ़ हो, क्या तुम इतना भी नहीं समझते कि जिस औरत ने अपनी अस्मत जैसी अनमोल चीज देकर यह ऐश ओर तकल्लुफ़ पाया वह जिन्दा रहकर इन नेमतों का सुख जूटना चाहती है। जब तुम सब कुछ खोकर जिन्दगी से तंग नहीं हो तो मैं कुछ पाकर क्यों मौत की ख्वाहिश करूं? अब रात बहुत कम रह गयी है। यहां से जान लेकर भागो वर्ना मेरी सिफ़ारिश भी तुम्हें नासिर के गुस्से की आग से रन बचा सकेगी। तुम्हारी यह ग़ैरत की कटार मेरे क़ब्जे में रहेगी और तुम्हें याद दिलाती रहेगी कि तुमने इज्जत के साथ ग़ैरत भी खो दी।